अंतिम संस्कार , कहीं कब्र से निकाल लेते हैं खोपड़ी तो कहीं गिद्धों को खिला देते हैं शव

इंसान से जुड़ा हुआ आखिरी सांसारिक रिवाज़ है उसका अंतिम संस्कार. हर देश, धर्म और जाति में इंसान का अंतिम संस्कार उसकी परंपरा और रिवाज़ के मुताबिक होता है. हिंदू धर्म में शव को जलाने की परंपरा है तो मुस्लिम और इसाई धर्म में शव को दफनाया जाता है. दुनिया में भांति-भांति के लोग हैं और अनोखी हैं उनकी परंपराएं. ऐसे में अगर हम आपसे कहें कि इसी दुनिया में कुछ जगहों पर अपने प्रियजनों के शव को उनकी कब्र से बार-बार खोदकर निकाला जाता है या उनके टुकड़े-टुकड़े कर गिद्धों को भोजन करा दिया है, तो शायद आप हमारी बात का यकीन न कर पाएं लेकिन ये सच है. चलिए कुछ ऐसी ही अनोखे अंतिम संस्कार के रिवाज़ों से आपको रूबरू कराते हैं

दुनिया में भांति-भांति के लोग हैं और अनोखी हैं उ

दुनिया में भांति-भांति के लोग हैं और अनोखी हैं उनकी परंपराएं. ऐसे में अगर हम आपसे कहें कि इसी दुनिया में कुछ जगहों पर अपने प्रियजनों के शव को उनकी कब्र से बार-बार खोदकर निकाला जाता है या उनके टुकड़े-टुकड़े कर गिद्धों को भोजन करा दिया है, तो शायद आप हमारी बात का यकीन न कर पाएं लेकिन ये सच है. चलिए कुछ ऐसी ही अनोखे अंतिम संस्कार के रिवाज़ों को जानना दिलचस्प है.

मदागास्कर नाम की जगह पर रहने वाली मालागासी जनजाति में अंतिम संस्कार की परंपरा का नाम है – फामादिहाना. इस परंपरा के तहत मर चुके परिजन के शव को पहले तो दफनाया जाता है. इसके कुछ सालों बाद शव के अवशेषों को निकालकर साफ कपड़े में लपेटते हैं और इस प्रक्रिया को उत्सव की तरह नाच-गाने के साथ मनाया जाता है. फामादिहाना हर 7 साल के बाद यूं ही सेलिब्रेट किया जाता है.

चीन और फिलीपींस में कई जगहों पर इंसान की मौत के बाद उनके शवों को दफनाया नहीं जाता बल्कि ताबूत में रखकर ऊंचे चट्टानों पर लटका दिया जाता है। ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि इससे मृतक की आत्म सीधे स्वर्ग में पहुंच जाती है. इसके अलावा वह कीटों और पक्षियों से भी सुरक्षित रहती है.

ऐसी ही अनोखी अंतिम संस्कार की परंपरा पापुआ न्यू गिनी के अंगा जनजाति के लोग अपनाते हैं. यहां मृतक के शव को थोड़ा जलाया जाता है और फिर अधजले शव की ममी बनाकर उसे पहाड़ों पर हमेशा के लिए सुरक्षित करके रख दिया जाता है. मान्यता है कि इस तरह शव पहाड़ियों से गांव पर हमेशा नज़र रखते हैं.

घाना में क्रिश्चियन फ्यूनरल की परंपरा सबसे ज्यादा दिलचस्प है. यहां मृतक के पेशे और और उसकी ज़िंदगी के आधार पर ही कॉफ़िन का चुनाव होता है. जैसे अगर मरने वाला मछुआरा है तो उसे नाव जैसे कॉफ़िन में दफ़न किया जाता है और मरने वाला अगर बिजनेसमैन तो उसे बीएमडब्ल्यू जैसे कॉफ़िन में दफनाया जाएगा. बताते हैं ये परंपरा 60 साल से चली आ रही है.

किरिबती में किसी इंसान की मौत के बाद उसके शरीर क

किरिबती में किसी इंसान की मौत के बाद उसके शरीर को 12 दिन तक घर में रखा जाता है. जब हर कोई उनके दर्शन कर लेता है तो उन्हें कब्र में दफ़ना दिया जाता है. कुछ महीनों बाद फिर कब्र को खोदकर शव से खोपड़ी को निकाल लिया जाता है और उसकी साफ-सफाई करके रिश्तेदारों और दोस्तों के दर्शन के लिए रखा जाता है. मान्यता है कि इस तरह मृतक उनके भगवान नका से मिल जाता है.

तिब्बत के बौद्ध समुदाय में इंसान की मौत के बाद उसके शव के छोटे-छोटे टुकड़े कर उन्हें गिद्धों को खिला दिया जाता है. यहां यह परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है, जिसे नियिंगमा परंपरा (स्काई बरियल) कहा जाता है. ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि मृत व्यक्ति के शव को अगर गिद्ध खाएं तो उनकी उड़ान के साथ उस व्यक्ति की आत्मा भी स्वर्ग में पहुंच जाती है. जबकि वो आखिरी वक्त तक प्राणियों की तृप्ति के काम आता है

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button